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लेख-निबंध >> कट्टरता जीतेगी या उदारता

कट्टरता जीतेगी या उदारता

प्रेम सिंह

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :247
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13972
आईएसबीएन :8126709383

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सांप्रदायिकता की विचारधारा भूमंडलीकरण की विचारधारा के साथ मिल कर देश की आर्थिक और राजनैतिक संप्रभुता पर गहरी चोट कर रही है।

कट्टरता जीतेगी या उदारता यह पुस्तक भारतीय राजनीति और समाज को पिछले दो दशकों से मथने वाली सांप्रदायिकता की परिघटना को समझने और उसके मुकाबले कीप्रेरणा औरसम्यक समझ विकसित करने के उद्देश्य से लिखी गई है। चार खंडों - वाजपेयी (अटलबिहारी), संघ संप्रदाय, जॉर्ज फर्नांडीज, गुजराल - में विभक्त इस पुस्तक में सांप्रदायिकता के चलते पैदा होनेवाली कट्टरता, संकीर्णता और फासीवादी प्रवृत्तियों और उन्हें अंजाम देने में भूमिका निभाने वाले नेताओं, संगठनों, शक्तियों आदि का घटनात्मक ब्यौरों सहित विवेचन किया गया है। इसमें मुख्यतः सांप्रदायिकता के राष्ट्रीय जीवन के सामाजिक-सांस्कृतिक-शैक्षिक-अकादमिक आयामों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों/दुष्परिणामों की भी शिनाख्त और आकलन किया गया है। सांप्रदायिकता की विचारधारा भूमंडलीकरण की विचारधारा के साथ मिल कर देश की आर्थिक और राजनैतिक संप्रभुता पर गहरी चोट कर रही है। पुस्तक में दोनों के गठजोड़ का उद्घाटन करते हुए, उसके चलते दरपेश नवसाम्राज्यवादी खतरे के प्रति आगाह किया गया है। पुस्तक की विषयवस्तु सांप्रदायिकता और उससे होने वाले बिगाड़ को चिन्हित करने तक सीमित नहीं है। इसमें धर्मनिरपेक्षता, उदारता, लोकतंत्र और समाजवाद की विचारधारा के पक्ष में लगातार जिरह की गई है। इस रूप में यह सरोकारधर्मी और हस्तक्षेपकारी लेखन का सशक्त उदाहरण है। भाषा की स्पष्टता और शैली को रोचकता पुस्तक को सामान्य पाठकों के लिए पठनीय बनाती है।

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